Saturday, July 20, 2019

State of Indian Economy from Macro and Micro Perspective

Understanding Present Economic Condition from two different perspectives

 *MACRO*
कहानीकार : श्री गौरव दुआ
शीर्षक        : गोरिया का कागज़

यह कहानी शुरू तो १९४४ में हुई थी पर पिछले तीन सालों में बहुत रोचक हो गई है....

कहानी के पात्र हैं ये चार देश:

गोरिया (अमेरिका)
भूरिया (यूरोप)
पीलिया (चीन)
कालिया  (भारत)

गोरिया ने सन १९४४ के आस पास एक ऐसी कागज़ (डॉलर) बनाने की मशीन बना ली कि हर आदमी को उसकी ही मशीन से बना कागज़ चाहिए था और उस कागज़ के लिए दुनिया भर के लोग अपने घर में रखा सोना भी देने को तैयार थे । धीरे धीरे गोरिया के लोगों को दुनिया में किसी भी चीज़ को खरीदने के लिए कुछ भी नहीं करना पड़ता था क्योंकि गोरिया अपने पूरे परिवार को कागज़ बाटता था जिससे वह जो चाहे वो खरीद लेते थे। इसके लिए उन्हें बहुत मामूली सा ब्याज़ लगता था, साल भर में १०० कागज़ के एवज में एक कागज़ से भी कम।

भूरिया इस मशीन से बहुत जलता था और उसने यह तय किया के वह अपने पूरे परिवार (यूरो जोन) के साथ मिलकर गोरिया से अच्छी कागज़ बनाने वाली मशीन बनाएगा और ऐसा कागज़ (यूरो) बनाएगा की दुनिया गोरिया के कागज़ की जगह उसके कागज़ के लिए अपना सोना देने को तैयार हो जाएगी।

पीलिया यह बात समझता था की मशीन बनाना उसके बस की बात नहीं है इसलिए उसने यह तय किया की गोरिया का काग़ज़ पाने के लिए वह हर वो सामान बनाएगा जो गोरिया को लगेगा ताकि उसके पास ज़्यादा से ज़्यादा कागज़ इकठ्ठा हो जाए।

कालिया को भी पता था कि उससे मशीन नहीं बनेगी और उसके घर में खाने के भी लाले थे।  इसलिए सामान बनाने की जगह कालिया के लोगों ने अपने परिवार के बच्चों को गोरीये के यहां नौकरी करने और मशीन के बजाय दिमाग से बनने वाली चीजों के लिए तैयार किया ताकि इन चीजों के एवज में  गोरिया के काग़ज़ उन्हें भी मिल सके।

पीलिया ने बड़े बड़े कारखाने लगाने शुरू करे और ज्यादा से ज्यादा लोगो को उन कारखानों में नौकरियां दी और गोरिया के लिए एक से एक सामान बना कर उन्हें काग़ज़ के एवज में देने लगा।

उधर गोरिया के व्यवसायियों ने अपने लोगों की पसंद को समझते हुए पीलिया के यहां और कारखाने लगा दिए। पीलिया के लोग अब गोरिया के व्यवसायियों द्वारा बनाई हुई डिजाइन के अनुसार सामान बनाने लगे।

गोरिया के व्यवसायियों को जितने काग़ज़ अपने लोगों से सामान बनवाने के लिए देने पड़ते, पीलिया के लोग उससे कही कम में वही सामान बना कर के दे देते। इसलिए गोरिया ने अपने उपयोग के सामान बनाने के लिए खाने पीने की चीजों को छोड़कर अधिकतर कारखाने पीलिया के यहां लगा दिए।

इधर कालिया के लोगों के बच्चे जो कि पढ़ने में अच्छे थे उन्हें गोरिया के लोगो ने अपने यहां काम करने के लिए नौकरी पर रखना शुरू कर दिया। फिर एक ऐसा समय आया कि कालिया के पढ़े लिखे बच्चों को अपने घर बैठ कर गोरिया से काम मिलने लगा। गोरिया को फायदा ये मिला कि अगर वह उन्हें उनके घर पर रह कर काम करने को देते तो कागज़ भी कम लगते।

समय के साथ पीलिया के पास बहुत ज़्यादा काग़ज़ आने लगे क्योंकि वह सामान बना कर दे रहा था और कालिया के लोग नौकरी कर रहे थे तो उन्हें कम कागज़ मिलते थे।
पीलिया ने अपना सामान गोरिया के अलावा भूरिया और कालिया को भी गोरिया काग़ज़ के एवज में देना शुरू कर दिया । पीलिया ने सामान बनाने में इतनी महारत हासिल करली कि कोई भी अपने घर में अपने खुदके उपयोग का सामान भी इतने कम काग़ज़ के बदले नहीं बना सकता था।
यह सब उसने एक सोची समझी रणनीति के तहत किया और सभी अपने उपयोग के सामान के लिए पीलिया पर निर्भर हो गए।

पीलिया के अधिकतर लोग कारखानों में काम करने लगे पर कालिया परिवार के अधिकांश लोग खेती में लगे रहे सिवाय उनके जो पढ़ाई में होनहार थे। वे गोरिया के लिए काम करने लगे।

उधर भूरिया ने मशीन पर काम शुरू कर दिया था और उसे कुछ सफलता भी मिलने लगी थी पर इससे पहले की वह गोरिया के जैसा काग़ज़ बनता उसके परिवार के लोग काग़ज़ बनने से पहले ही गोरिया के लोगो की तरह रहने लगे और भूरिया ने अपने लोगो को गोरिया की तरह ही काग़ज़ बाटना शुरू कर दिया जिस से वह जो चाहे खरीद सकते थे। पर धीरे धीरे भूरिया की मशीन का काग़ज़ गोरिया के काग़ज़ के आगे फीका पड़ने लगा क्योंकि गोरिया ने दुनिया के सबसे ज़्यादा तेल उत्पादन करने वाले सुल्तान से मिलकर यह निश्चित कर लिया कि सुल्तान उसी को तेल देगा जो उसे गोरीए का काग़ज़ ला कर देगा। और तो और गोरिया ने उन सभी दूसरे सुलतानों की भी हत्या कर दी जो अपना तेल गोरीए के कागज के बजाय सोना लेकर दे रहे थे।

भूरिया का बुरा हाल हुआ क्योंकि ना तो उसका कागज चला और न ही उसके लोगों को कुछ और काम मिल सका जिसे करके वे गोरिए का कागज ले सके। इस वजह से भूरिए का पूरा परिवार टूट गया और उनके  मुखिया (ब्रिटेन) ने तय करा की वह अपने परिवार से अलग हो जाएगा (ब्रएग्जिट) और अकेला ही एक नई मशीन बनाएगा जो गोरिए की मशीन से बने काग़ज़ से टक्कर लेगी।

इस उठा पटक के बीच कुछ परिवारों के नेतृत्व में बदलाव हुए जिनसे कुछ नई परिस्थितियों ने जन्म लिया।

सबसे पहले कालिया का नया मुखिआ आया और उसने दो महत्वपूर्ण लक्ष्य तय करें पहला कि किसी तरह कालिया के लोगो को ज़्यादा से ज़्यादा गोरिया परिवार का काग़ज़ मिले और उसे इस बात का अहसास था कि अगर उन्हें ज़्यादा कागज़ चाहिए तो उन्हें भी पीलिया के लोगों की तरह नौकरी करने के बजाय कारखाने लगाने होंगे ताकि ज़्यादा लोग खेती के अनिश्चित व्यवसाय से बाहर निकले और अपनी क्षमता अनुसार उत्पादन करे जिसे वो  दूसरे को देकर गोरिया का काग़ज़ ले सके। ऐसा करने के लिए उसने गोरिया एवं सभी अन्य लोगों को निमंत्रण दिया की वे आए और अपना सामान उसके घर में बनाए।
उसने दूसरा लक्ष्य यह रखा की एक लम्बी अवधि मे कालिया  के लोगों की गोरिया के काग़ज़ पर निर्भरता ना रहे। लेकिन ये तभी हो सकता था जब कालिया सुल्तान से तेल खरीदना बंद करे उसके लिए उसने तेल की जगह बैटरी और सौर ऊर्जा को महत्व दिया।

यह करने में उससे यह गलती हुईं की उसने कृषि व्यवसाय से जुड़ीं समस्या को अपने पहले पांच साल में उतनी प्राथमिकता नहीं दी जितनी उसने नए कारखाने लगाने पर दी।

कुछ समय बाद गोरिया के नेतृत्व में भी परिवर्तन आया और नया मुखिया आया। इस मुखिया की खास बात यह रही कि यह कोई समाज सेवी नहीं बल्कि एक व्यावसायिक था और उसे इस बात का बड़ा दुख था कि उसके परिवार की मशीन से बनने वाले कागज़ का सिर्फ ३५ प्रतिशत हिस्सा ही उसके गोरिया के व्यावसायिक भाई बहनों के पास जाता है। बाकी ६५ प्रतिशत हिस्सा अन्य को जाता है। यही नहीं उसमें सबसे बड़ा हिस्सा केवल एक को जाता है और वो है पीलिया। उसने यह भी देखा कि जो ३५ प्रतिशत हिस्सा गोरिया में जाता है उसमे एक बड़ा हिस्सा उसके घर में काम कर रहे दूसरी जगह के लोगों मै बटता है, जिनमें सबसे ज़्यादा कालिया के लोग है।
 उसने अपने व्यापारिक भाई और आम जनों को लाभ पहुंचाने के लिए दूसरे के घरों में लगे हुए कारखानों से आने वाले सामान पर पहले से २५ प्रतिशत ज़्यादा कागज़ देने का नियम बना दिया ताकि सामान बनाने के कारखाने उसके घर में लगे और उसकी मशीन से निकलने वाला कागज़ उसी के परिवार के पास रहे।

उसे लगा ऐसा करने से एक दिन दूसरे लोग उसके कागज़ पीछे दौड़ना बंद कर देंगे।

 ऐसा लोग ना कर सके इसके लिए उसने सुल्तान को अपने साथ कर रखा है क्योंकि सभी लोगो को तेल सिर्फ सुल्तान से मिल सकता है और सुल्तान तेल तभी देता है जब उसे गोरिया का कागज़ मिलता है ।

इन सब के चलते गोरिया के लोगों ने अपने घर में दुनिया का सबसे बड़ा तेल का कुआ भी ढूंढ लिया और गोरिया को अब खुदके उपयोग के लिए किसी से तेल लेने की जरूरत नहीं बल्कि अब गोरिया दूसरे परिवारों को भी तेल दे रहा है और उनसे अपने कागज़ मांग रहा है।

गोरिया के मुखिया की इस हरकत से जहां गोरिया के व्यवसायियों में खुशी की लहर फैली क्योंकि उन्हें पहले से ज़्यादा कागज़ मिल रहा है वहीं सबसे ज़्यादा हालात खराब पीलिया के लोगो की हो गई है क्योंकि सबसे ज़्यादा सामान तो वे गोरिया के लिए ही बनाते थे। और सबसे ज़्यादा कागज़ भी बनाए हुए सामान के लिए गोरिया के लोग ही देते थे। अब पीलिया के कारखानों में उत्पादन क्षमता से कहीं कम हो रहा है और वहाँ काम करने वाले लोग बेरोज़गारी की तरफ बढ़ रहे है। इस से बचने के लिए पीलिया ने अब पूरी ताकत के साथ कालिया और भूरिया के बाज़ार में अपना सामान भेजना शुरू कर दिया ताकि उनके यहां खपत हो सके।।।।


*MICRO*

कहानीकार : श्री गौरव दुआ
शीर्षक       : कलिये का घर (भारत)

यह कहानी शुरू होती है २०१४ से जब कालिया के घर पर एक नए नेता का चुनाव होता है

जब नया नेता चुनकर आता है तौ देखता है कि सबसे पहले उसके पास कितना गोरिया का कागज़ है

 _गोरिया कागज़_
२०१४
कागज़ जो खज़ाने में पढ़ा था 32581 हज़ार करोड़ इसमें से उधार का कागज़ है 22863 करोड़ मतलब 70% उधार

२०१९
कागज़ जो खज़ाने में पढ़ा है 57830 हज़ार करोड़ (२०१४ के मुकाबले 77.5% बढ़ गया) इसमें से  उधार का कागज़ है 17374 करोड़ मतलब 30% उधार जो पहले 70% उधार हुआ करता था

फिर उसने देखा कि उसके घर मै कितना उसका अपनी मशीन से बनाया हुआ कालिया कागज़ (रुपया) पढ़ा है जो कि वो अपने लोगो को ब्याज के एवज मै दे सकता है और लोग उस कागज़ के एवज मै जो चाहे खरीद सकते है पर कागज़ के लिए जो ब्याज लोगो को देना पड़ रहा था वह गोरिया, भूरिया एवं पीलिया के लोगो के मुकाबले बहुत ज़्यादा था जहां गोरिया के लोग साल भर का १०० कागज़ पर एक कागज़ से भी कम देते है वहीं कालिया के लोगो को साल भर के १२ से भी ज़्यादा कागज़ देने पढ़ रहे थे

 उसने यह जानने की जब कोशिश करी की ऐसा क्यों है तौ उसके पैरो तले से ज़मीन खिसक गई जब उसे पता चला कि पिछले आठ सालों मै इतना कागज़ छापा गया है जितना की उसकी मशीन ने पिछले साठ सालों में नहीं छापा था और उस मै से एक बढ़ा हिस्सा कुछ गिने चुने व्यापारियों को उधार के रूप में दिया गया है और वो व्यापारी अब कह रहे है कि वे अब कागज़ नहीं लौटा सकते नहीं बयाज़ दे सकते है और अब उसके घर मै और कागज़ भी नहीं बचा है लोगो को देने के लिए।

अब उसके पास दो विकल्प थे या तो वो और कागज़ छापे या फिर जिन लोगों ने कागज़ दबा के रखे है और ना तौ ब्याज दे रहे है और ना कागज़ लौटा रहे है उनसे कागज़ वापस ले।

नया कागज़ छापने के लिए गोरिया कागज़ की जरुरत थी पर वह तौ पहले से ही ७० प्रतिशत उधार पर था और अगर नया कागज़ छाप भी लिया जाता तौ जो सामान कालिया के लोग एक कागज़ देकर ले सकते थे वही सामान पांच कागज़ देकर भी नहीं मिलता

उसने तय किया कि वह उन सब लोगों से कागज़ लेकर रहेगा जिन्होंने गलत और गैर कानूनी तरीके से कागज़ जमा कर रखे है और उनसे लिए हुए कागज़ फिर वह ज़रूरत मंद लोगो को कम ब्याज पर देगा और उसने दो सख्त कदम उठाए पहला कदम था कि जिसके पास भी कागज़ पड़ा है वह कागज़ लौटाए  और नया कागज़ ले जाए पर यह बताए की वह पुराने कागज़ उनके पास कैसे आए (डीमोनेटाइजेशन) दूसरा कड़ा कदम जो उसने लिया वह था की जिन व्यवसायियों ने बड़ी मात्रा मै कागज़ ले रखा है और ना वे ब्याज दे रहे है और ना ही कागज़ वापस कर रहे है ऐसे व्यवसायियों द्वारा बनाए हुए कारखाने और उनके द्वारा उन कागज़ो से खरीदा हुआ सामान और ज़मीन छीन ली जाए और जो उसके एवज मै सबसे ज़्यादा कागज़ दे उसे दे दी जाए (आईबीसी कानून)

अब क्योंकि उसे अपने लोगो को कागज़ तो बाठना था भले ही वह कम हो और ब्याज ज्यादा लगता हो तब उसके देश के कागज़ बाठने वालों ने कागज़ बाटने का एक नया तरीका ढूंढ निकाला और उस तरीके मै उन्होंने यह तय किया की क्योंकि कागज़ की कमी है इसलिए कागज़ बड़े उद्योगों को देने की बजाए छोटे लोगो को देंगे जो कि ब्याज भी ज्यादा दे सकते है इससे यह होगा कि छोटे लोग कागज़ मिलने से अपना घर बनायेगे या ज़रूरत का सामान खरीदेंगे और उनके खरीदने से बड़े उद्योगों का सामान बिकेगा और उद्योग ज़्यादा समान बनाने के लिए और नए उद्योग लगायेंगे।

इसको करने के लिए कागज़ बाटने वालो ने एक नए आदमी को अपने साथ जोड़ा और उसका नाम था एनबीएफसी (आईएलएफएस, बजाज फाइनेंस) पुराने कागज़ बाटने वालो ने इस नए व्यक्ति को उधार देना बेहतर समझा बनिस्बत की सीधे छोटे व्यक्ति को देने के।

यह जो नए व्यक्ति थे यह दो तरह के थे एक जो मकान बनाने के लिए कागज़ बाट रहे थे और दूसरे जो सामान खरीदने के लिए  कागज़ बाट रहे थे। इन में से जो सामान खरीद ने के लिए कागज़ बाट रहा था उसका व्यापार घर के लिए कागज़ बाटने वाले से दस गुना ज्यादा होने लगा यह देख कर अब बहुत सारे लोग इस कागज़ बाटने के धंधे में उतरने लगे और वे कागज़ जो बाटने के लिए लाने लगे वो पुराने बढ़े कागज़ बाटने वाले लोग जिनके कागज़ सबसे सस्ते थे और सबसे लंबे समय के लिए मिलते थे कि बजाय उन से लेने लगे जिनके कागज़ महंगे थे और कम समय के लिए मिलते थे।

अब इन नए कागज़ बाटने वालो ने धंदा बढ़ता देख अंधाधुंध कागज़ बाटने का काम शुरू कर दिया । इनके धंधे का उसूल था कि यह किसी को कागज़ उधार उतने समय के लिए ही दे सकते है  जीतने समय के लिए उधार इनको मिला था बस ब्याज जो ये देते और जो इन्हें मिल रहा था उसमे फर्क होता था इन्हें मिलता ज़्यादा था ।

अब बीच मै एक ऐसा समय आया जब तेल बेचने वाले सुल्तान ने तेल के दाम कुछ समय के लिए एक दम बढ़ा दिए जब सुल्तान ने दाम बढ़ाए तब इन नए कागज़ बाटने वाले लगों को उनके कागज़ देने वाले लोगों ने कागज़ के एवज में  ब्याज बढ़ा दिया और कहा कि अगर नया कागज़ चाहिए तो नया दाम लगेगा अब इन नए कागज़ बाटने वालो के पास दो रास्ते थे या तौ वे नए दाम पर कागज़ ले या फिर पुराने कागज़ लौटा दे पर पुराने कागज़ लौटा तौ वे तभी सकते थे जब जिनको उन्होंने कागज़ दिए है वे वापस आए पर वे कागज़ तौ अभी देर से आने वाले थे फिर अब एक ही रास्ता बचा की वे ज़्यादा ब्याज पर नया कागज़ ले और ऐसा करने से उनको भारी नुकसान होने लगा इस नुकसान को रोकने के लिए उन्होंने अब नए लोगो को कागज बांटना बंद कर दिया जिसकी वजह से लोग जो सामान खरीद रहे थे उन्होंने खरीदना बंद कर दिया है ।